हार्डवेयर क्या हैं?
कम्प्यूटर के अन्दर एक प्रोसेसर होता हैं जिससे बाकी डिवाइस (devices) जुड़े होते हैं। इन सभी डिवाइस को और स्वयं कम्प्यूटर को हार्डवेयर कहा जाता हैं इस तरह कम्प्यूटर से जुड़ी सभी इनपुट, आउटपुट डिवाइस या अन्य भागों को हार्डवेयर कहा जाता हैं। कम्प्यूटर हार्डवेयर के कुछ भाग कम्प्यूटर चलाये जाने के लिए आवश्यक होते हैं जैसेकि 'कीबोर्ड, मॉनिटर, माउस, फ्लॉपी डिस्क या हार्ड डिस्क ड्राइव। इन्हें कम्प्यूटर की मानक युक्तियां कहते हैं।
इन डिवाइस के अलावा जो भाग सीधे कम्प्यूटर से जोड़े जाएं उन्हें Peripheral devices कहते हैं, जैसे - टेप, टेप ड्राइव, प्रिन्टर, प्लाटर, जॉयस्टिक, माउस, लाइट पेन, ग्राफिक टेबलेट, कैसेट, कैसेट-प्लेयर, मोडेम, टर्मिनल आदि।
Hardware Components (हार्डवेयर के तत्व):
वर्तमान समय में इस्तेमाल होने वाले पर्सनल कम्प्यूटर में साधारण और जटिल दोनों तरह के कंपोनेंट होते हैं। साधारण इन्हें इस तरह से कहा जा सकता है कि कई दशकों के विकास की वजह से बहुत से कंपोनेंट मिलकर एक इंटीग्रेटेड का निर्माण करते हैं जिसकी वजह से कम्प्यूटर के एक पार्ट का निर्माण होता हैं। इसे जटिल इस तरह से कहा जाता हैं कि मॉडेम सिस्टम के अंतर्गत ऐसे बहुत से फंक्शन जुड़ते जा रहे हैं जो कि पुराने सिस्टम में नहीं थे। वर्तमान समय में एक पर्सनल कंप्यूटर को एसेंबल करने जिन कंपोनेंट की जरूरत होती है वह निम्न हैं
मदरबोर्ड :-
कम्प्यूटर का सबसे ज्यादा सर्किट इसी कंपोनेंट में होता हैं। इसमें ही रैम से लेकर हार्ड डिस्क जैसे सभी भाग जोड़े जाते हैं।
प्रोसेसर :-
प्रोसेसिंग के सभी कार्य प्रोसेसर के द्वारा ही सम्पन्न होते हैं। हम पेंटियम शब्द को अक्सर सुनते हैं वह वास्तव में एक प्रोसेसर का ही नाम हैं। इसे मदरबोर्ड में लगाया जाता हैं।
रैम (रैंडम एक्सेस मेमोरी) :-
इसे हम कम्प्यूटर का दिमाग कह सकते हैं। इसे मदरबोर्ड में बनी मेमोरी स्लॉट में लगाया जाता हैं। इस समय कई तरह की रैम प्रयोग होती हैं। लेकिन सबकी सामान्य रूपरेखा एक जैसी ही हैं।
कैबिनेट :-
कैबिनेट में ही मदरबोर्ड, हार्ड डिस्क, फ्लॉपी डिस्क, सीडी रोम इत्यादि को असेम्बल किया जाता हैं। पावर सप्लाई भी मदरबोर्ड के द्वारा ही होती हैं।
पावर सप्लाई :-
यह कम्पोनेंट कैबिनेट में जुड़ा होता हैं। इसके द्वारा समूचे कम्प्यूटर में विद्युत आपूर्ति होती है। इसकी क्षमता 200 वाट से लेकर 250 वाट तक हो सकती हैं ।
फ्लॉपी डिस्क ड्राइव :-
इसके जरिए आप फ्लॉपी में स्टोर डेटा कम्प्यूटर में इनपुट कर सकते हैं और कम्प्यूटर की हार्ड डिस्क में स्टोर डेटा फ्लॉपी में कॉपी कर सकते हैं। प्रारंभ में 8 inch आकार की फ्लॉपी डिस्क ड्राइव का इस्तेमाल होता था।
इसके बाद यह आकार कम होकर 5.2 हो गया और इसके बाद 3.5 की फ्लॉपी डिस्क ड्राइव का इस्तेमाल होने लगा | इसकी डेटा स्टोर करने की क्षमता 1.4 मेगाबाइट से लेकर 2.88 मेगाबाइट तक हो सकती हैं।
हार्ड डिस्क :-
इसका इस्तेमाल कम्प्यूटर में सेकेंडरी मेमोरी के तौर पर होता हैं और यह कम्प्यूटर का सबसे भरोसेमंद स्टोरेज माध्यम हैं। वर्तमान समय में इसकी क्षमता गेगाबाइट से भी आगे निकल गई हैं।
तकनीक की वजह से इसका आकार कम होता जा रहा हैं और डेटा स्टोर करने की क्षमता बढ़ती जा रही हैं। इसे कम्प्यूटर के मदरबोर्ड में लगी आईडीई या क्रेजी पोर्ट से जोड़ते हैं।
सीडी ड्राइव :-
सीडी ड्राइव का इस्तेमाल मल्टीमीडिया कंप्यूटर की वजह से चलन में आया था। लेकिन आज इसका इस्तेमाल डेटा का बैकअप लेने के लिए मुख्य डिवाइस के रूप में किया जा रहा है। पहले इसे सीडी-रोम कहते हैं जिसका मतलब होता था रीड ओनली मेमोरी। इस तकनीक के तहत यह ड्राइव केवल सीडी में लिखें डेटा को पढ़ सकती थी। लेकिन आजकल यह तकनीक बदलकर आरडब्ल्यू हो गई हैं। जिसका अर्थ होता हैं रीड और राइट।
अब आप इसमें फ्लॉपी डिस्क की तरह से सीडी में डेटा स्टोर भी कर सकते हैं, और पहले से स्टोर भी कर सकते हैं, और पहले से स्टोर डेटा को पढ़ भी सकते हैं। इस समय 52 तक की सीडी ड्राइव को इस्तेमाल किया जाता हैं।
डीवीडी ड्राइव :-
या सीडी ड्राइव को एडवांस संस्करण हैं इसका पूरा नाम होता है डिजिटल वर्सटाइल डिस्क। इसका आकार सीडी जितना ही होता हैं लेकिन इसकी क्षमता कई सीडी के बराबर होती हैं। यह सीडी से कीमत में ज्यादा होती हैं। आजकल सीडी ड्राइव की जगह लोग इसे भी इस्तेमाल करते हैं। देखने में यह बिलकुल सीडी ड्राइव की तरह से होती हैं।
की-बोर्ड :-
यह प्राइमरी इनपुट डिवाइस हैं। इसके द्वारा आप अंको और अक्षरों के रूप में कम्प्यूटर में डेटा इनपुट कर सकते हैं। इस समय 104 Keys वाले मल्टीमीडिया की-बोर्ड का प्रयोग किया जा रहा हैं। इसे कम्प्यूटर में लगे मदरबोर्ड से जोड़ते हैं।
माउस:-
यह आजकल इस्तेमाल होने वाले कम्प्यूटरों की मुख्य पॉइंटिंग डिवाइस हैं। इसके द्वारा ग्राफिक गुजर इंटरफेस वाले ऑपरेटिंग सिस्टम में निर्देश देने का काम किया जाता हैं। इसके अतिरिक्त डिजाइन वाले प्रोग्रामों में आकृतियों का निर्माण भी किया जाता हैं।
इस समय दो तरह के माउस इस्तेमाल किए जा रहे हैं। माउस में नीचे की और एक छोटी सी बॉल लगी रहती हैं जो घूमती हैं जिससे प्वाइंटर स्क्रीन पर मूव होता हैं। जबकि दूसरे में ऑप्टिकल तकनीक का इस्तेमाल होता हैं। इसमें प्रकाश के रिप्लेक्शन से माउस प्वाइंटर मूव होता है।
वीडियो कार्ड :-
इस कार्ड के जरिए ही हम मॉनिटर को कम्प्यूटर से जोड़ते हैं। मॉनिटर पर हमें जो भी दिखाई देता हैं उसका कारण वीडियो कार्ड हैं। इस समय AGP वीडियो कार्ड प्रयोग किए जा रहे हैं। कई मदरबोर्ड में यह पहले से ही इनबिल्ट होते हैं।
मॉनिटर :-
यह कम्प्यूटर की मुख्य आउटपुट डिवाइस हैं। वर्तमान समय में Color VGA मॉनिटर का प्रयोग हो रहा है लेकिन LCD तकनीक के सस्ते होने की वजह से अब इनका चलन भी बढ़ रहा हैं। सामान्य मॉनिटर में कांच से बनी CRT का प्रयोग होता हैं। जिसका पूरा नाम हैं कैथोड रे ट्यूब। जिसकी वजह से मॉनीटर का आकार, मोटाई बहुत ज्यादा होती हैं। जबकि LCD तकनीक में Liquid crystal display होता हैं जिसकी वजह से इसकी मोटाई एक इंच से भी कम होती हैं।
साउंड कार्ड :-
इस कार्ड की वजह से आप स्पीकर और माइक को कंप्यूटर के साथ इस्तेमाल कर पाते हैं। यह मल्टीमीडिया उपकरण हैं, बहुत से मदरबोर्ड में साउंड कार्ड का सर्किट इनबिल्ट होता है जबकि ज्यादातर यह एक कार्ड के रूप में होता हैं।
स्पीकर :-
कंप्यूटर में आवाज के रूप में आउटपुट स्पीकरों के द्वारा ही सुनाई देता है। इसे कम्प्यूटरों में लगे साउंड कार्ड से जोड़ा जाता है।
माइक :-
इस उपकरण का इस्तेमाल कंप्यूटर में आवाज को इनपुट करने के लिए किया जाता हैं। इसे साउंड कार्ड से बने माइक के स्थान पर जोड़ते हैं।
मॉडेम :-
इंटरनेट से जोड़ने में इसकी भूमिका सबसे अहम हैं। आजकल दो तरह के मॉडेम इस्तेमाल होते हैं इनमे एक को इंटर्नल मॉडेम और दूसरे को एक्सटर्नल मॉडेम कहते हैं।
इंटर्नल मॉडेम कम्प्यूटर के अंदर होता है जबकि एक्सटर्नल मॉडेम को बाहर रखकर कम्प्यूटर के सीरियल या यूएसबी पोर्ट से जोड़ते हैं। केबल हो या टेलीफोन लाइन से कनेक्शन मॉडेम से ही दिया जाता हैं। यह सभी कंपोनेंट आपस में जुड़कर वर्तमान समय मे इस्तेमाल होने वाले पर्सनल कम्प्यूटर का निर्माण करते हैं।.
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